Definitions Belong to the Definers Not the Defined Meaning in Hindi: परिभाषाएँ परिभाषित करने वालों की होती हैं, परिभाषितों की नहीं,” यह वाक्य दर्शन, साहित्य, और सामाजिक न्याय से जुड़े विचारों का एक जटिल जाल समेटे हुए है। इसे समझने के लिए, हमें इस कथन के विभिन्न आयामों और इसके निहितार्थों पर गहराई से विचार करना होगा।
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वाक्य का शाब्दिक अर्थ:
सामान्य तौर पर, हम किसी चीज़ की परिभाषा किसी शब्द या वाक्यांश के माध्यम से करते हैं। इस कथन के अनुसार, यह परिभाषा “परिभाषितकर्ता,” यानी जिसने उसे बनाया है, उसी की सोच का प्रतिबिंब होती है, न कि “परिभाषित” स्वयं की। यानी किसी व्यक्ति, समूह या विचारधारा को कैसे परिभाषित किया जाता है, यह परिभाषित करने वाले के दृष्टिकोण से निर्धारित होता है, न कि परिभाषित किये जाने वाली इकाई की स्वयं की पहचान से।
अधीनता और प्रतिरोध के आयाम:
यह कथन उन स्थितियों को उजागर करता है, जहां परिभाषाएँ शक्ति असंतुलन और अधीनता को बनाए रखने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। आमतौर पर, हाशिए के समुदायों को दूसरों द्वारा परिभाषित किया जाता है, जो उनके आत्मनिर्णय और स्वायत्तता को कमजोर कर सकता है। यह कथन इस अधीनता का विरोध करता है और इस बात की जोरदार वकालत करता है कि परिभाषाएँ व्यक्तियों या समूहों द्वारा स्वयं को परिभाषित करने का एक साधन होनी चाहिए।
भाषा, संस्कृति और पहचान का जटिल रिश्ता:
भाषा और संस्कृति परिभाषाओं को आकार देती हैं, और ये परिभाषाएँ बदले में हमारी पहचान को प्रभावित करती हैं। यह कथन इस जटिल रिश्ते की ओर इशारा करता है। यह इस बात को चुनौती देता है कि परिभाषाएं दी गई और अपरिवर्तनीय होती हैं, बल्कि उन्हें लगातार पुनर्विचार और नई व्याख्याओं के लिए खुला होना चाहिए।
Toni Morrison: वाक्य का उद्गम और प्रभाव:
यह उल्लेखनीय है कि “परिभाषाएँ परिभाषित करने वालों की होती हैं, न कि परिभाषितों की” वाक्य अमेरिकी लेखक Toni Morrison द्वारा प्रस्तावित किया गया था। उन्होंने काले अनुभवों को परिभाषित करने के लिए श्वेत वर्चस्व द्वारा लगाए गए लेबलों के खिलाफ विद्रोह करते हुए इस वाक्य का इस्तेमाल किया। यह वाक्य आज भी उन समुदायों के संघर्ष का प्रतीक है, जो खुद को परिभाषित करने और अपनी पहचान बनाने के लिए लड़ रहे हैं।
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आगे की चर्चा के लिए विस्तार के बिंदु:
- ऐतिहासिक संदर्भ: इस कथन के ऐतिहासिक संदर्भ पर चर्चा करें, खासकर नागरिक अधिकार आंदोलन और हाशिए के समुदायों के संघर्षों के साथ इसके संबंध को उजागर करें।
- दार्शनिक व्याख्याएँ: विटगेनस्टाइन, फूको, या डेरिडा जैसे दार्शनिकों के विचारों के माध्यम से इस कथन की दार्शनिक व्याख्या प्रस्तुत करें।
- वर्तमान प्रासंगिकता: इस कथन की प्रासंगिकता समकालीन सामाजिक मुद्दों, जैसे लिंग पहचान, सांस्कृतिक विनियोग, और इंटरनेट पर पहचान निर्माण से जोड़कर प्रदर्शित करें।
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